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2013दिल्ली की एक घटना


जनवरी की बेहद ठंडी शाम थी!
मैं अपने डेरे पे बैठा लोगों को चुतिया बना रहा था!
अचानक ,
धड़ाम से दरवाजा खुला ,,
और शर्मा जी हाफ़तें हुए अंदर आ घुसे!
बाल बिखरे हुए शर्ट आधी फ़टी हुई,
मेरी तो गांड फट के हाथ में आ गई!
बहनचोद!ठेके से दारू लाना भी ऐसा हो गया है,
जेसे महायुद्ध छिड़ गया हो!
बोले शर्मा जी चिढ़ते हुए!
उनकी बात सुन के मेरे शांति पड़ी ,
और मेरी फ़टी हुई सील गई!
मैने सेवक को आवाज लगाई,
कुछ खाने पिने का लाने के लिए आदेश दिया!
सेवक सुन के चल दिया!
मैने बोतल निकाली थैले से ,
तो उछल के पड़ा,
"देसी" वो भी"टाइगर ब्रांड"
और कोई नही मिली क्या???
पूछा शर्मा जी को!
तूने कोण सा चेक काट के दिया था,
जो विलायती लाता!!
अब तूने तो कुछ देना नहीं है,
बोतल चाहिए बढ़िया वाली!!
बोले शर्मा जी त्यौरियां चढ़ा के!
सारे दिन में 150/- कमायें,
120 की बोतल,20 के चने,10 की बीड़ी आगई!
सारा दिन की कमाई तेरे ऊपर झोंक दी,
फिर भी तुझे चैन नही है!!!
पीनी हो तो पी,
वरना "गांड मरा"
बोले शर्मा जी हथ्थे से उखडते हुए!
मेने हाथ पैर जोड़े मिन्नतें की,
तब जा के माने ऐसे हैं मेरे शर्मा जी!
इतने में सेवक खाने-पीने का सामान ले आया,
गर्मागर्म भुने बकरे के आँड लहसुन मसाले वाले,
सलाद, पानी देख के ही,
आँखों और मुँह में पानी आ गया!
खुशबु ऐसी उड़े ,
की मच्छर मक्खी सब गायब!
मित्रगण! बनाये पेग और हम हुए शुरू,
थोड़े आँड-सलाद चाबे,और खिंचा पैग !
पेग मारते ही "तोते"उड़ गए हमारे,
दारू गले को चीरती हुई,
गांड का पता पूछ आई!
आँखे कबूतर के जैसी लाल हो गई!
शर्मा जी तो नीचे जा गिरे पलंग के,
पता चला की पानी डालना तो भूल ही गया!
"नीट"पैग मार लिया!
"भोसड़ी के"जब पैग बनाना नही आता ,
तो क्यों हाथ लगाता है,बोले शर्मा जी!
खेर !!!अगला पेग पिया,
तो सारे लत्ते-कपडे उतार फेंके,
अब हम कच्छा-कच्छा में बैठे थे!
अब कोई भरी सर्दी में ऐसे बैठ सकता है क्या?
पर हम बेठे थे,
"टाइगर ब्रांड"दारु के बदौलत
बाबा लोडुगिरि का फोन आया था आज,
बोले शर्मा जी अपने टट्टों को सेट करते हुए
कब आने वालें है बाबा जी?पूछा मेने काँख खुजाते हुए,
परसों सुबह 5:00 बजे वाली ट्रेन से,बोले वो
गुरु जी कोई दवा बताओ ना आप टट्टों में बड़ी खुश्की हो गई है,
पूछा शर्मा जी ने जबर तरीके से खुजाते हुए!
मैने आँखें बंद की और ध्यान लगाया,
मन्त्र पढ़ के "झाम पाड़" का हुक्का (बीड़ी) सुलगाया,
वो दनदनाता हुआ हाजिर हुआ,मेने उसको हुक्का दिया
और शर्मा जी समस्या बताई,
इस भोसड़ीवाले को बोल की पानी में तेल डाल के
नहाया करे,टट्टों की तो छोडो पुरे शरीर की खुश्की दूर हो जायेगी!
इतना बोल के "झाम पाड़" धूल उडाता हुआ लोप हो गया!
मित्रगण!!"झाम पाड़" मेरा सिपहसालार है
मेने शर्मा जी को बताया उपाय,उन्होंने उपाय सुन के मेरे
चरण स्पर्श किये और आशीर्वाद लिया,
खेर!!हम देर रात तक पीते रहे,सेवक ने खाना
लगा दिया,खा-पी के शर्मा जी अपने घर को चले गए
और मैं भी अपनी भावी साध्वियों के सपने लेता मुट्ठ
मार के सो गया!!

अगले दिन सुबह आँख खुली तो कमरे का हाल देख के चक्कर आ गया!
आठ-दस चूहे,बहुत सारे कॉकरोच और मच्छर,मक्खी मरे पड़े पुरे कमरे में!
समझ नही आया कुछ की क्या हुआ?
फिर अपनी समझदानी पे पूरा जोर डाला तो सब समझ आ गया!
मित्रों ये कमाल था रात खाये मसाले दार लहसुन वाले आन्डो का!
उनको खा के जो सारी रात विस्फोट हुए उसका असर था ये!
खेर साहब मजा का मजा हो गया और कमरे का पेस्ट कंट्रोल हो गया!
मेने अपने कपडे पहने ,सेवक को साफ-सफाई की बोल के जंगल-पानी होने चल दिया!
बाहर आ के देखा तो शर्मा जी चबूतरे पे सिकुड़े हुए सोये पड़े थे!
उनको जगाया!
आँखे मिचमिचाते हुए उठे शर्मा जी,
अरे!!आप घर नही गए क्या?हैरानी से पूछा मेने!
घर क्या कच्छे में ही चला जाता क्या भनचोद!इतने दरवाजे पीटे की हाथ भी सूज गए पर दरवाजा नही खोला किसी ने,बोले शर्मा जी तमतमाते हुए!
ठण्ड में अख़रोट भी बेर की गुठली जेसे हो गए मेरे!बोले शर्मा जी,
उनको समझाया बुझाया किसी तरह से अंदर ले जा के कपडे दिए,
हम चल दिए फिर जंगल-पानी को,
निपट-निपटा के आ बैठे कमरे में!
सेवक चाय ले आया,हमने चाय के साथ रात के बचे चने जो की हम खाना ही भूल गए थे वे ही रगड़ डाले!
हमारी तो सुबह करारी हो गई!
चाय पि के शर्मा जी चले गए अपने घर,अब उनको कल सुबह ही आना था!
मेने भी अपने फालतू के काम निमटाये और चददर् तान के सो गया!वो दिन गुजारा किसी तरह,अगले दिन सुबह 4:00 बजे शर्मा जी डेरे पे आ पहुँचे!
आज बाबा लोडुगिरि जी को आना था!सो उनको लेने स्टेशन पे जाना था!
शर्मा जी ने मुझे जगाने के लिए जेसे ही रजाई हटाई,उछल के पड़े!
मेरा एक हाथ लिंग पे और दूसरे हाथ की उँगलियाँ गांड में थी!
अबे ये क्या कर रहा है,ये शौक भी पाल रखे है क्या?बोले शर्मा जी!
ये "गंड़ास क्रिया"है शर्मा जी,बोला मेने उनको समझाते हुए!
मित्रगण!!!ये एक खास क्रिया है,
इस क्रिया के अलग खास मन्त्र और प्रक्रिया होती है!बहुत ध्यान और नियंत्रण रखना होता है!ये क्रिया सही से हो पुरुष वीर्यवान बन जाता है,जरा सी भी चूक हुई तो साधक "गण्डवा"हो जाता है!
ये क्रिया मुझे मेरे गुरु श्री श्री श्री महाचोदू जी तीन टाँग वाले ने सिखाई थी!
(गुरु जी के बारे में फिर कभी बताऊंगा आपको)
तो मित्रगण!!हम तैयार हुए और चल दिए स्टेशन!
वहाँ पहुँचे तो गाड़ी आधा घण्टा लेट थी!
हम दोनों जा बैठे एक बेंच पे!तभी मेरी निगाह सामने पड़ी सुलगती हुई सिगरेट पर पड़ी,मेने झट से उठाई और खींचा एक जोरदार कश!
धुआँ फेफड़ों को सहलाता नाक के रास्ते धन्यवाद करता हुआ निकल रहा था!
खुद ही सुटोगे क्या पूरी सिगरेट,बोले शर्मा जी नाराजगी दिखाते हुए!
लो आप भी मौज करो,मेने मुस्कुराते हुए सिगरेट बढ़ाई उनकी तरफ,
विदेशी है!बोले वो कश लेते हुए
हां!!मेलब्रो की है,कहा मेने उनको देखते हुए
आज तो दिन सुधार दिया आपने गुरु जी,बोले शर्मा जी भावुक होते हुए!
हम बातें कर ही रहे थे की ट्रेन आ पहुँची!
हम लगे बाबा जी की खोज में अब,
दूर बाबा लोडुगिरि जी बोगी से उतरते हुए दिखाई दिए!
हम जा पहुँचे उनके पास ,
प्रणाम बाबा जी!!कैसा रहा सफर?
पूछा मैने हाथ जोड़ते हुए
बढ़िया रहा,बोले वो

उनके साथ एक बड़ी ही खूबसूरत लड़की थी जिसे देख के मेरा अरमान पेंट में सर उठाने लगा!
क्या नाम है तुम्हारा,पूछा मेने उस लड़की से!
केतकी!!बोली वो मुस्कुराते हुए!
उसकी मुस्कुराहट देख मेरे अरमान के आँसू ही छलक गए,और मेरा अरमान अपना मुँह पल्ले में छिपा फिर से सिकुड़ गया!
किसी तरह अपने को सम्भाला और हम चल दिए डेरे की तरफतीन दिन लंबा सफ़र करके आये थे बाबा लोडुगिरि तो उनका आराम करने का इंतजाम करके हम बाहर आगये!शर्मा जी बोले अब इन गांडूओं को क्या खिलाएंगे क्या पिलाएंगे!यहाँ तो खुद के टोटे हो रहे हैं!ये लोडुगिरि तो मुर्गे से निचे कुछ खाता ही नहीं!मेने कहा चिंता ना करो सब हो जायेगा!मित्रगण मेरे डेरे के पास एक बस्ती है जहाँ लोग मुर्गियाँ और बतखें पालते हैं!मैं अक्सर वहाँ जाके चोरी छिपे जो भी हाथ लगता मुर्गी अंडा ले आया करता था!पर एक दिन रंगे हाथ पकड़ा गया!फिर जो मेरी धुलाई की बस्ती वालों ने मुझे आज तक याद है!जिसकी मुर्गी चुरा रहा था वो एक लंबा तगड़ा कला भुसण्ड आदमी था!उसने मुझे कमरे में कैद कर दिया और सारी रात उस मुर्गी की वसूली की जो मेने खाई भी नही थी!आप समझ सकते हैं की कैसे वसूली की होगी!सुबह लंगड़ाते हुए डेरे पंहुचा।वो दिन के बाद फिर कभी हिम्मत नही हुई उस तरफ जाने की!उस रात की याद करके मेरी कंपकपी छूट गई!वहां जाने का विचार त्याग दिया मेने!सोचा देखा जायेगा
अचानक शर्मा जी बोले लो बन गई बात!मेने हैरान होते हुए पूछा की क्या याद आ गया?बोले ये पास में ही तो बस्ती है वहाँ से जुगाड़ हो सकता है!बस्ती का नाम सुनके मैं अंदर तक काँप गया लेकिन बाहर के कुछ नही दिखाया!वो बोले चलो चलते है वहाँ!मेने कहा यूँ मेहमानों को अकेला छोड़ना ठीक नहीं आप हो आओ!वे बड़े जोश में उठे मेने आशिर्वाद दिया और वो चले गए!अब मेरे पास करने को तो कुछ था नहीं सो मैं पैर पसार के लेट गया!
तो मित्रगण मैं थोड़ी देर लेटा रहा!सेवक आया बोला की लोडुगिरि जी के साथ जो लड़की आई है वो आप को बुला रही है ! मेने सोचा उसको क्या काम आन पड़ा मुझसे! खेर !! मैं चला उसके कमरे की और क्या बला की खूबसूरती थी उसकी! हर तरफ से रस टपक रहा था!गोरी चिट्टी कटीले नैन नक्श
उसके यौवन की ऐसी गर्मी चढ़ी थी की मेरे पसीने छुटने लगे!
केतकी!!कुछ काम था क्या मुझसे?पूछा मेने!
वो बोली! अबे चडियल कोई जवान लड़की किसी मर्द को अकेले अपने कमरे में किस लिए बुलाती है?
मैं समझ गया इसे जवानी की चुल उठी है!
मेने झट से उसे पीछे से पकड़ा और चिपक के उसके उन्नत उरोजों का मर्दन करने लगा!
वो मस्त होने लगी !मेने उसके ब्लाउज में दोनों हाथ डाल सहलाना शुरू कियाकी
तभी मेरे बाएं हाथ से कुछ टकराया!
बाहर निकाल के देखा तो 1000 की गुलाबी पत्ती थी,
चार तह की हुई!
देखो ऊपर वाले के खेल,,
जरूरी नही की वो छप्पर फाड़ के ही दे वो ब्लाउज फाड़ के भी देदेता है!
मेने उसे झट से जेब में डाला और फिर शुरू हो गया!
तभी अहसास हुआ की
"मेरे तो बादल बरस" भी गए!!
वो आँखे बंद किये मुझ पे लदी पड़ी थी!
मेने उसको पलंग पे पटका निकल भागा बाहर!
उसके कुछ समझ में भी ना आया होगा की क्या हुआ!
मित्रगण पैसे मिल गए थे!
मैं खुश था बहुत पर एक "दुःख" था,
ये साला "शीघ्र पतन"
इसका कोई इलाज नही था मेरे पास,
क्योकिं ये बीमारी हुई भी मेरी गन्दी आदत की वजह से!
खेर !! मैं आके लेट गया और इंतजार करने लगा,
शर्मा जी का,
शाम के 8 बज गए थे लेकिन अभी तक लौटे नही थे!
मेरे मन में अजीब अजीब ख्याल आ रहे थे!
इतने में ही वे आते दिखे,
कपडे फ़टे हुए थे, मुहँ उतरा हुआ दर्द से कहराते हुए!
हाथ में मुर्गा भी था!
सोचा!! मुर्गा लेके भागते वक्त कही गिर गिरा गए होंगे!
मेने बोला ये क्या हाल बना रखा है आपने अपना!
बोले, उस बस्ती में तो मैं आइन्दा कभी नही जाऊँ!
बहनचोद!! मेरी "चवन्नी कूट कूट के ढकना बना दिया"!
जेसे ही मुर्गा लेने के लिए पिंजरे में हाथ डाला,
एक काले भुसण्ड ने पकड़ लिया,,
और 7 घण्टे तकमेरी चवन्नी कूटता रहा ,
क्या मूसल जैसा लण्ड उसका,
घोडा भी बाप बोल दे उसको!
आखिर में जब वो थक के रुका,
तो मेने बोला- भाई मेरे खेत में आपने इतना हल चलाया,
उसका कुछ इनाम भी देदो!
तो उसने ये मुर्गा दे दिया!
शर्मा जी की बात सुन के मेरी आँखों में आंसू आ गए,
और उनको गले लगा लिया!
वे सोचे की उनके इस बलिदान पे मुझे रोना आया,
पर मुझे तो ये सोच के रोना आया की,
इनकी जगह मैं होता तो क्या दुर्गत होती ?
खेर एक पंथ दो काज हो गए!
मित्रगण!!शर्मा जी से मेरी मुलाकात कैसे हुई ये आपको बताता हूँ !
एक दिन मैं बाजार जा रहा था !
बाजार में बहुत भीड़ थी !
तभी मेने देखा की एक सांड खड़ा था ,
मुझे पता नही क्या सुझा मेने उसके पिछवाड़े में ऊँगली कर दी !
फिर वो सांड़ बिदक गया !
हर तरफ अफरा तफरी मच गई ,
वो मेरी और लपका तो मेने मन्त्र पढ़ के थूका उसकी तरफ,
वो दूसरी और पलट गया !
लेकिन शर्मा जी उसकी जद में आ गए!
सांड ने जेसे ही सींग उनकी गांड में घुसाना चाहा ,
मेने उनको दूसरी ओर खींच लिया और बचा लिया!
वे छुटते ही बोले," इसकी बहन की चूत"
अभी कर देता" बवासीर का ऑपरेशन " !
मेरी हँसी छुट गई,
और उन्होंने मेरा धन्यवाद किया !
मुझे उनकी ये अदा बड़ी पसंद आई गाली वाली !
तब से हम साथ हैं,
अच्छे दोस्त हैं !!
गाली गलोच,
सब चलता है हमारे बीच!!

मित्रगण!सारा सामान इकट्ठा हो गया था दावत का!
चाहे जेसे भी हुआ हो ,पर हो गया!
शर्मा जी को भेज दिया थोडा हुलिया सुधारने को!
बाबा लोडुगिरि को बुलवा लिया!
बोतल खोली वोही स्पेशल टाइगर ब्रांड,
इस के पीछे भी एक राज है!
एक दिन शर्मा जी ने
हिंदी फ़िल्म " एक था टाइगर " देख ली ,
तब से ये ब्रांड उनका फेवरेट हो गया!
अब कोई बताये की देसी दारू पिने से,
कोई सलमान बन जाता है क्या?
पर खुद को मानते थे!
आज सारी हीरो गिरी निकल गई इनकी!
खेर!!सेवक सलाद मुर्गा पानी दे गया,
तो हम हुए शुरू ,
बनाया पेग खींच मारा ,
एक ही सांस में!!
अब हमको तो आदत सी पड़ गई थी,
बाबा लोडुगिरि का मुँह चूतड़ जैसा हो गया ,
एक ही घूँट में!!!
बहुत "कड़क" माल है,
पहली धार की है क्या?पूछा उन्होंने!
उठाई" टंगड़ी "लगे चबाने मजे में ,
शर्मा जी की जो गांड सुलगी,
तपत मेरे तक पहुँच रही थी!
उनका बस चलता तो,
बाबा की कुण्डी में ,
अपनी मुसली से सारी रात चटनी कूटते!
लोडुगिरि ने अपना गिलास खाली करके नीचे रखा!
हमारी तरफ देखते हुए,
बड़े रहस्यमय तरीके से बोले
" ततैया "
हम दोनों की गांड फट गई सुनते ही,
भागे सर पे पैर रख के ,
जा घुसे रजाइयों में!
पीछे-पीछे सेवक आया बुलाने,
की बाबा ने बुलाया है चलो!
तब पहुँचे वहाँ!!
लोडुगिरि हमको देखते ही बोले
" बावलीगांडो"
पहले बात तो पूरी सुन लिया करो!
भागे तो ऐसे जेसे ,
किसी ने तुम्हारी गांड में काला मूसल ठोक दिया हो!
शर्मा जी की तो जेसे ,
"दुखती रग" पे हाथ रख दिया उन्होंने!
शर्मा जी को गुस्सा तो बहुत आया पर,
बेचारे कर कुछ नही सके !!
क्योकि उनके पिछवाड़े में तकलीफ ही इतनी ज्यादा थी,
सो मन मसोस के बैठे रहे!
बाबा आपकी शक्ल "चुतिया" है ,
कम से कम ,
बात तो अच्छी कर लिया करो!!बोला मेने!!
" ततैया "
कह के क्या मजाक कर रहे थे!!
" ओ चूतिये "
चिल्लाये बाबा!!!
"ततैया"
यक्ष ,गन्धर्वो की तरह ही एक योनि है!
अब हुए हम दोनों के दीदे चौड़े!!
गांड लगी बुलबुले छोड़ने,
ये बाबा तो मुसीबत लेके आया है!
सोचा मेने अपने मन में!
फिर भी उत्सुकता थी,
मन में की पता तो चले ,
लोडुगिरि के मन में चल क्या रहा है!
बाबा ने आगे बताना शुरू किया..........

बाबा ने बताना शुरू किया,
हिमालय की तराइयों में,
" ततैयों "की नगरी है!
ज्यादातर अद्रश्य ही रही है ,
हर पूर्णिमा की रात को दिखाई देती है बस,
1000 साल में एक बार उनका मिलान समारोह होता है ,
और वो तिथि अगले महीने में आने वाली है!
मेने अगला पेग बनाया ,
थमा दिया सबके हाथ में!
मेने पूछा- आपको कैसे पता चला ये सब?
बोले -केतकी के पिता,
"बाबा राण्डनाथ" बड़े पहुचे हुए सिद्ध थे !
वे जा चुके थे कई बार वहाँ!!
जा चुके थे मतलब?पूछा उनसे!
वे अब नही है ,बोले लोडुगिरी!
ओह!!
मुझे केतकी ने बताया ये सब ,
तो तेरा ध्यान आगया ,
इस तरीके के" चूतिये" मसले,
" तू" आराम से सुलझा लेता है!
मै सोचने लगा..
इतने में ही लोडुगिरी भाग के ,
पास की होद में जा कूदे!!
शर्मा जी गांड घसीटने लगे ,
और मुझे गश आ गया!
कुछ देर में होश आया ,
तो पता चला की नीट पेग मारा गया!!
फिर में दड मार के लेता रहा,
कहि शर्मा जी मेरी गांड ना तोड़ दे!
दड मारने के चक्कर में,
मुझे नींद आ ही गई!!
किसी ने चूतड़ों पे लात मारी,
तो आँख खुली !!
देखा तो शर्मा जी,
" जलती नजरों"से घूर रहे थे !!
और गालियाँ दे रहे थे,
तेरी गांड को गधा चोदे,
"कुतिया चोद"
तू तो बोतल को हाथ ही ना लाया कर ,
भूतनी के!!!
उनके पैर पकड़ के ,
माफ़ी मांगी मनाया उनको ,,
तब शांत हुए!!
सुबह के 4:30 हो चुके थे!
हम उठे,
जा घुसे अपने बिस्तरों में और सो गए!
सुबह 11:40 पे आँख खुली,
सामने केतकी खड़ी थी!
चाय हाथ में लिए,
मैं पड़ा था उघाड़ा ,,
वही स्टाइल में!
एक ऊँगली गांड में एक हाथ लंड पर!
उसे देखते ही मेरा माल निकल गया!
वो जोर जोर से हँसने लगी,
मैं खसियाया सा उठ बैठा!
मेने तो सुना था तुम बहुत बड़े लंडेत हो!बोली केतकी!!
पर तुम तो एक नंबर के "खस्सी" निकले!बोली वो!
ज्यादा" बेइज्जती" ना हो ,
इस लिए बात पलटी मेने !!
तुम गई हो क्या,
"ततैया नगरी" में?
हाँ!!!
बोली वो!
उसका नाम" लक्ष्मीनगर" है!
वहाँ "ततैया राज विपुलेश्वर "
का राज्य है!
मेरे तो,
वहाँ के राजा का नाम सुनके ही ,
"कुत्ते फेल" हो गए.........केतकी ने आगे बताना शुरू किया,
उस स्थान तक पहुचने में,
14-15 दिन लग जायेंगे!
अगर उनको प्रसन्न कर लिया,
तो बहुत धन और सिद्धियाँ मिलेंगी!
अब मैं ठहरा एक नंबर का "चूतड़ चाट ",
मेरी तो बाँछे खिल गई!
मेने कहा तुम चिंता ना करो,
मैं उनको प्रसन्न कर लूंगा आराम से!
अब वहाँ जाने की तैयारिया करनी थी!!
केतकी के चुराए हुए पैसों में से,
सिर्फ 700 रूपये ही बचे थे!
इतने में तो ,
एक दिन का भी सफ़र ना होता!
नहा-धो के निकला शर्मा जी के साथ,
आज अपना असली रूप दिखाना था!!
शर्मा जी को समझाया,
और चल पड़े बाजार!
जा पहुचे नमकीन वाले के यहाँ,
शर्मा जी ने उसे लगाया बातों में,,
मेने मोका देख,
नमकपारे और मट्ठी का एक -एक कट्टा पार किया
और निकल लिया,
"एड़ियों पे तेल" लगा के!!
घर आके ही साँस ली!
10 मिनट बाद,
शर्मा जी भी आ पहुँचे!
कुछ बात बनी?पूछा उन्होंने
!जब दोनों कट्टे दिखाए तो ,
उन्होंने मेरा माथा चूम लिया!
बोले -धन्य हैं!!
आप गुरु जी!
आप जैसी "प्रचण्डता" किसी में नहीं!!
खाने का तो इंतजाम हो गया था,
20 दिन आराम से निकल जाते हमारे!!
अब टिकट का इंतजाम करना था,
सो वो हो नही सकता था!
बाकि के पैसों की थैलियां खरीद लीं,
काफी सारी आ गई!!
महीने भर चलती!!!
टिकट का भी सोच लिया क्या करना है!
मित्रगण!! हम सब तयारिया करके,
निकल लिए सफ़र पे!!
शाम की ट्रेन थी ,
सो चढ़ लिए ,
संभाल ली अपनी अपनी बर्थ!!
मेने बैठते ही निकाली थैलियां ,
और खींच डाली!!
लोडुगिरी को आदत नही थी उसकी ,
ऊपर से मेने 2 थैलियां ज्यादा भी पिला दी थी!!
उनको तो अब अगले दिन ही होश आना था!
हम भी सो गए!!
रात में,
किसी ने जगाया!
देखा तो टी टी था,
लंबा चौड़ा शरीर उसका!
नेम प्लेट देखि ,
तो नाम था ,
" अजय सिंह लंडवालिया "
जितना खतरनाक खुद था,
उतना ही खतरनाक नाम था!!
टिकट दिखाओ,
बोला वो!!
मेने कहा साहब टिकट तो नही है,
उतरो फिर नीचे ट्रेन से!कहा उसने,
मेने पूछा कोई और "रास्ता" नही है क्या?
वो सोच में पड़ा!
मेने कहा,
हमें दूर जाना है!
पैसे नही हैं,
आप मेरी चाची को चोद के" वसूल"कर लो !!
अगर दिक्कत नही हो तो!!
उसकी आँखे चमकने लगी,
उसकी पेंट में उभार दिखने लगा!
बन गई बात सोचा मेने,
ठीक है !!बोला वो,
कहाँ है? पूछा उसने,
मेने लोडुगिरि की तरफ इशारा कर दिया !
कुछ बोलेगी तो नही?पूछा उसने!
मेने कहा- नही !!
आप आराम से कर लो ,
कोई दिक्कत नही है!!
बस
टिकेट बना देना चार!
वो राजी हो गया!
ट्रेन में काफी अँधेरा था,
और लोडुगिरि पेट के बल सोया था!!
तो कोई दिक्कत नही थी !
टी टी ने अपना,
" 12 इंच का हथियार"
निकाला जेसे ही,
मेने बोला-
चाची की चूत मत मारना!!!
क्यों??
घूरा उसने,
चाची की" चूत में हैजा " है!
आप गांड मार लो इनकी!!
मुस्कुराया वो,
उसकी मुस्कुराहट देख के,
मैं समझ गया!!
की वो और भी ज्यादा खुश हो गया है,
वो दो घण्टे तक,
लोडुगिरि को पेलता रहा!!
फिर टिकट भी बना दी!
बहुत मजा आया,
कई दिन का स्टॉक था!!
आज निकला!
बोला मुस्कुराते हुए,
ऊपर से 100 रूपये भी दे दिए मुझे!
मेने एक थैली और खिंची,
और चद्दर तान के सो गया!
सुबह जेसे ही मेरी आँख खुली.........सुबह बोगी में बवाल मचा हुआ था!
लोडुगिरि उछल-उछल के भाग रहा था,
इधर उधर ,
शर्मा जी, केतकी और भी कई लोग,,
उसे सम्भालने की कोशिश कर रहे थे!
पर वो काबू में नही आ रहा था!
मेने पूछा- शर्मा जी से क्या हुआ इनको ?
बोले- पता नही!!
जब से उठा है,
" पिछवाड़ा" पकड़ के चिल्लाये जा रहा है !
भगवान जाने क्या हुआ इसको ,
रात को तो राजी ख़ुशी सोया था!
मैं तो समझ गया,
रात में ,,
टी.टी ने जो उसकी "किश्ते"भरी है!
ये उसी का परिणाम है !
मेने 2 थैली निकली ,
गिलास में डाल के पिला दी!
तब थोडा चुप हुआ !
क्या हुआ आपको ?
पूछा लोडुगिरि से!
मुझे ये थैली वाली दारू शूट नही हुई लगता है,
गांड में तकलीफ है बहुत,
सूजन भी लग रही है !बोले वो !
मेने कहा एक थैली और पिलो,
आराम करो, आराम हो जायेगा !
एक और पेग मार के,
वे तो सो गए दोबारा !
मेने केतकी को देखा !!!
वो मुझे ही देखे जा रही थी!
क्या हुआ?
पूछा मेने उससे!
चाय पीनी है मुझे!!!बोली वो,
आगे स्टेशन आने वाला था !
तो बोल दिया उसको कुछ समय ठहरने को!
स्टेशन आया ,
तो उतार गया मैं चाय लेने!
3 चाय ली बाकि के भजिये ले लिए,
लोडुगिरि की "गांड की कमाई "
खूब काम आई!!
चाय और भजिये देख के केतकी खुश हो गई!
रगड़ मारे सारे हम तीनो ने,
लो जी पेट पूजा तो हो गई!!
मैं चला आराम करने,बोले शर्मा जी,
और चढ़ गए ऊपर!
मेने केतकी से पूछा- कितना सफर है आगे का?
कैसे जाया जायेगा?
आश्रम तक पहुँच जायेंगे परसों तक -बोली वो,
वहां से अपने आश्रम की गाड़ी जायेगी आगे,
3 दिन का सफ़र है ,
फिर आगे पैदल जाना होगा!
कोई साधन नही है 7-8 दिन लगेंगे उसमे!बताया उसने
समझ लिया मेने,
की सही चुदने वाली है!
पर धन और सिध्दियों का लालच,
खिंचे ले जा रहा था,,
सो जा रहे थे!!!
ऐसे ही ,
मस्ती मारते सफर बीत गया हमारा!
लोडुगिरि के पिछवाड़े में भी आराम था,
अब पर लंगड़ा के चल रहे थे!!
शर्मा जी को शक हुआ कुछ ,
बोले- इसकी" माँ का भोसड़ा"
साली दारू तो हमने भी,
सस्ती से सस्ती पी है !!
पर ऐसा असर तो,
ना देखा ना सुना ना हुआ!!!
अब कोने में ले जाके बताया उनको सब ,
तो सर पकड़ के बैठ गए!
मादरचोद!!!चिल्लाये वो
सबकी गांड मरवा दे,
किसी को बख्शेगा भी की नही!
मैं समझ गया,
इनकी गांड की तरह,
इनका दिमाग भी ढीला हो लिया है!
तो मेने जल्दी से खोली थैली ,
बनाया पेग पिलाया जबरदस्ती उनको!!
बोले हँसते हुए -सारे "टुच्चे" काम किये मेने,
पर किसी बाबा की "गांड की कमाई के भजिये"
पहली बार खाये!
आप भी कमाल के हो गुरु जी!हम स्टेशन के बाहर आये,
आश्रम की गाडी हमें लेने आई थी!
दोपहर में हम सब आश्रम पहुँच गए!
लोडुगिरि को लंगड़ा के चलता देख,
वहाँ बैठी एक बुढ़िया बोली-
लंगड़ा के काहे चल रहा है रे "लोडू"
पैर में चोट है या "गांड मराये हो"
बोली बुढ़िया हँसते हुए!
पता नहीं अम्मा जी क्या हुआ ,
अचानक से तकलीफ बन गई!
आ के दवा ले जाना,
बोली अम्मा जी उठते हुए!!
केतकी ने बताया की बुढ़िया,
वहां की मानी हुई " वैद्दन" है!
ज़बरदस्त इलाज करती है!!
मित्रगण!!हमको कमरा दे दिया गया,
हम जा के नहाये-धोये,
खाना भी आ गया!
खा-पी के डकार मारते हुए,
पसर गए खटिया पे!!
शाम को उठे,चाय आ गई थी,
चाय पी हमने और टहलने निकल लिए!
बाबा लोडुगिरि दिखाई दिए,
पूछा हमने तो बताया दवा लेने जा रहे हैं,
अम्मा जी के पास!!
हम भी साथ चल दिए!
जा पहुँचे एक कुटिया में,
दुआ-सलाम हुई अम्मा जी से,
और बैठ गए हम!!
चल रे " लोडु" धोती खोल के लेट जा चटाई पे,
बोली अम्मा जी!!
बाबा लेट गए,अम्मा ने जाँच की,
तेरा तो बहुत बुरा हाल है रे "लोडु",
क्या किये थे?
पूछा अम्मा ने मुँह पे हाथ रखते हुए!
दारू पी थी अम्मा जी स्पेशल वाली!!
बोले बाबा जी!
बोतल मुँह की बजाए गांड में डाल लिए थे क्या?
पूछा अम्मा जी ने!
चल लेटा रह अभी दवाई लगाती हूँ,
बोली अम्मा जी!
अम्मा ने कुछ देर कई किस्म की,
" जड़ी-बूटिया" कूटी
और लगा दी बाबा के पिछवाड़े में!
जा अब आराम कर बोली अम्मा लोडुगिरी को,
बाबा उठे और चले गए!
आप भी करवा लो अपना इलाज,
कहा मेने शर्मा जी को!!
आप बोल दो!! बोले शर्मा जी,
अम्मा!!जरा इनको भी देख लो,कहा मेने
आजा तू भी लेट चटाई पे कपड़े उतार के,
बोली अम्मा जी!
पसर गए शर्मा जी मगरमच्छ के जेसे चटाई पे!
अम्मा जी ने जाँच की अम्मा हैरान,
तेरा तो लोडु से भी ज्यादा बुरा हाल है रे शर्मा,
बोली अम्मा जी आँखे बड़ी करते हुए!
तू भी दारू गाँड पे पीता है क्या?पूछा अम्मा ने,
नहीं!!! बोले शर्मा जी
अच्छा!!!तो नवाबी शौक है!बोली अम्मा जी,
नही!!ऐसा कुछ नही है अम्मा जी,
बोले शर्मा जी किलसते हुए!!
बचपन में पैर फिसल गया था,
तो खूँटे पे जा गिरा तब से ऐसा ही है!
बोले शर्मा जी समझाते हुए!!
खेर मित्रगण!!अम्मा ने दवा लगा दी,
और आराम करने की सलाह दी!!
हम वापस अपने कमरे में आये,
खाया पिया और सो गए
अगले दिन.........अगले दिन ,
सुबह आँख खुली तो देखा ,
शर्मा जी ऐसे उड़े उड़े फ़िरे ,
ऐसे खुश हो रहे ,,
जेसे कव्वे के मोर के पंख उग आये हो!!
रात रात में!
क्या हुआ भोसड़ी के !!
राजी तो ऐसे हो रहे हो ,
जेसे नई नई जवान हुई" कुतिया "
पहली बार चुदी हो,बोला मेने!
शर्मा जी झेंपते हुए आये मेरे पास,
बोले-बुढ़िया कमाल का इलाज करती है,
गांड तो ऐसी हो गई की कभी सील टूटी ही ना हो!
दिखाओ जरा!! बोला मेने।
उन्होंने कच्छा उतारी और हो गए औंधे,
सच में देख के हैरानी हुई मुझे,
उनके तबले ऐसे हो गए जेसे,,
अभी नए बन के आये हों।
लोडूगिरि का पैगाम आया ,
चलने की तयारी करो जल्दी निकलना है!
बाँधा सामान लद गए गाड़ी में ,
चार हम चार सहायक और एक ड्राइवर,
कुल 9 जन थे!
निकल लिए,
बाबा गुप्तांगधारी जी का नाम लेके!
वो तीन दिन का सफ़र ऐसा कटा ,
जेसे हमारे साथ गैंगरेप हुआ हो!
आखरी पड़ाव पे हम शाम को ही पहुँचे,
खाना पीना हुआ सो गए तम्बू में जाके!
आगे पैदल यात्रा करनी थी,
इस गांडू विपुलेश्वर को भी ,
इतनी दूर जाके ही गाम बसाना था क्या ?
बोला मेने!!
पास होते तो क्या " झाँट" उखाड़ लेते उसकी!!!
बोले शर्मा जी!
एक थैली उनके हाथ में दी ,
और एक खुद खोली,,
खींच मारी हमने!!
आप की बात भी सही है!कहा मेने!
और सो गए अब होनी थी असली परीक्षा!
अब तो थैलियों का ही सहारा था!
अगले दिन सुबह ,
जल्दी ही चलने की तयारी हो गई!
सारा सामान सहायकों पे लाद दिया ,
और हम चल दिए हाथ हिलाते हुए आगे आगे!!
आठवें दिन दोपहर को जा पहुँचे एक जगह!
कोई द्वार सा था ,
जेसे पुराने वक्त में शहरों के होते थे!!
उसके पार कुछ नहीं,
जंगल ही जंगल!!!
लोडूगिरी से पूछा मेने ,
ये कोण सी जगह ले आये हो आप?
यहाँ तो कुछ भी नही!
आज पूर्णिमा है !! बोले वो
रात को ही नजारा होगा यहाँ,
तब देखना!!!
अब रात तक इन्तजार करना था हमें.....शाम 7 बजे आँख खुली मेरी!
शर्मा जी चूतड़ टेढ़े करे पसरे पड़े थे,
उनके पिछवाड़े लात मार के जगाया उनको,
उठ गंडवे कब तक सोता रहेगा!बोला मेने!!
वे उठे और एक घुटना मारा मेरे आंडो पे,
मैं तो वहीं पसर गया!!
बोले ,तेरी माँ को ऊँट चोदे ,
बहनचोद!!
मैं केतकी को चोद रहा था सपने में,
तेरे कारण माल ना निकाल पाया!!
साला!!शीघ्रपतन का मरीज,
और निकल गए बाहर!!
मैं अपनी इस कमजोरी पे,
आंसू बहाता रहा कई देर तक!!
फिर बाहर आया!
देखा पूरा चाँद निकल आया था!
लोडुगिरि क्रिया की तयारी कर रहा था!
लोडुगिरि ने देखा मेरी तरफ,
और बोला,सारी तयारिया कर दी है मेने ,
अब तुझको सम्भालना है आगे!
कर लेगा ना सही से सब?पूछा उन्होंने!
हां!!!! बोला मेने
देखते जाओ अब आप!
और ये चुतियापा बंद करो,
की होगा की नही! बोला बाबा को!
मेने अपने कपडे उतारे सारे,
जा पहुँचा अलख पे,,
" गुप्तांगधारी जी" का जयकारा लगाया,
अपने गुरु " श्री श्री श्री महाचोदु जी " का स्मरण किया!!
और लाइटर से जला के,
अलख उठा दी!!!
किया आह्वाहन,
अपनी शक्ति " जानू चुड़ैल "का!
वो प्रकट हुई!
आते ही चिल्लाते हुए,
अपनी चूत को मेरे मुह पे,,
जोर जोर से रगड़ने लगी!
मेरे हाथ पकड़ के अपने घुटनों तक लटकते चुचों पे रखा!
पर मुझ जेसे चूतिये में कोई फिलिंग नही आई!
ना ही मेरा खड़ा हुआ!
मित्रगण!!
" जानू चुड़ैल " बहुत ही चुदक्कड़ शक्ति है!
जब तक साधक का जुगाड़ खड़ा रहेगा,
वो साथ रहेगी!
नही तो चली जायेगी!!!
जाते जाते साधक के आंडो को,
एड़ी से फोड़ के जायेगी!!!
ऐसी साधना जबर लण्डधारियों को ही करनी चाहिए!
ये सिध्दि मुझे मेरे गुरु जी से मिली थी!!
मित्रगण!!!
वो कई देर लगी रही,
पर मेरा खड़ा ना हुआ!
उसने आव देखा ना ताव,
दे मारी एड़ी मेरे अखरोटों पे!!
और ये जा वो जा!
मुझे तो मिर्गी चढ़ गई दर्द के मारे!!!
सब भागते हुए मेरे पास आये,
और ले गए तंबू में !
शर्मा जी बोले लोडूगिरि से,
महाराज!!
आप इस पन्नौती के चक्कर में ना पड़ो ,
खुद ही शुरू करो!!
आगे देख लेंगे जो इसे करना होगा!
"बाप ने ना चोदी सूरी छोरा लंडबाज"
बोलते हुए ,
लोडुगिरि बाहर चला गया......लोडुगिरि चला तो गया,
पर हुआ कुछ नही उससे!
शर्मा जी आये भागे भागे,
बहनचोद!!वो तो तेरे से भी ज्यादा ढीला है!
बोले शर्मा जी!!
अब तू ही कुछ कर,बोले मुझसे,
मेने मुंडी हिलाई,
और लगा सोचने!!
एक काम करो आप,कहा मेने,
शर्मा जी को देखते हुए,
आप एक "चुसाड़" मारो तगड़ी वाली,
बोला मेने शर्मा जी को!!
तुझे और कुछ नही सुझा क्या,
"झोटे के पोलियोग्रस्त चिचड़" चिल्लाये शर्मा जी!
और कोई रास्ता नही है, बताया उनको,
शर्मा जी ने बुरा सा मुँह बनाया,
और मेरी कच्छा उतारी और लगे चूसने!
बीच-बीच में बोलते जाएँ की आप पे ही विश्वास है मुझे!
आज खड़ा कर के ही मानूँगा!
उनकी श्रद्धा देख के ,
मेरे लोडे ने फुरफुरी ली जरा सी!
मुझे और शर्मा जी की " उम्मीद" सी जगी कुछ!
उनको साइड हटाया!
और किया एक मन्त्र का जाप!!
मन्त्र पूरा हुआ ,
और प्रकट हुआ " हिज सांडा "
मित्रगण!!ये शक्ति सन्देश लाने ले जाने का काम करती है!
और अपने आप को बड़ा प्रचण्ड समझती है,
पर होती है एक नंबर की चुतिया!
जेसे ही ये शक्ति प्रकट हुई आशीष दिया उसने ,
"आंडो नहाओ लंडो फलो "
मित्रगण !!ये शक्ति विश्वास करने लायक नही होती,
जो साधक इसे सिद्ध करता है,,
उसके लिए भी नुकसानदायक रहती है!
परंतु कोई भी सन्देश हो तुरंत पहुँचाती है!!
इस लिए इसे सिद्ध किया जाता है!
ये सन्देश लेके आये तो,
इसको तुरंत गांड पे लात मारो!!
तो ये वफादार रहती है,
अन्यथा ये धोखा दे देती है!!
मेने भेजा उसे अपने गुरु के पास ,
तो संदेसा ले के आई ये शक्ति!!
साथ में एक जड़ी बूटी भी थी!
बताया मुझे की इसको खाने से 2 घंटे के लिए खड़ा हो जायेगा!
मेने खाई बूटी चुसाया शर्मा जी को अपना लौड़ा!
खड़ा हो गया, मैं चला तम्बूसे बाहर !
मेने देखा.......बाहर लोडुगिरि लगा था केतकी के साथ !
देख के ऐसा लगा जेसे ,
कुत्ता ऊँटनी की लेने की कोशिश कर रहा है!
बात भी ऐसी ही थी !
केतकी झुकने के बाद भी ,
लोडूगिरि से से एक फुट ऊँची थी!
वो जब कुछ नही कर पाया,
तो बेचारा हताश हो के बैठ गया!
समय बीतता जा रहा था,
और हम अभी तक द्वार भी ना खोल पाये थे!
अब क्या करें,पूछा मेने!
"चाबी" बोली वो!
क्या????पूछा मेने
हां चाबी से खोलना पड़ेगा अब!
"भहन की लौड़ी"बोला मेने गुस्से से,
जब चाभी है तुम्हारे पास तो ,
पहले क्यों नही बताया?पूछा उससे!
तुम्हारा दम-खम देखना था,बोली वो
पर तुम खस्सियो के बस का तो कुछ नही है!
चाबी में जंग लगा है,और वक्त कम बचा है,
माल निकाल के डालो उसपे जल्दी से,बोली वो!
वरना "झांट" भी ना मिलेगी "ततेयो" की!!
मित्रगण!!मेने पढ़ा मन्त्र,
और किया आह्वाहन
"बसंती डाकन "का!
मित्रगण ! बसंती डाकन बड़ी ही चुदक्कड़ होती है!
चाहे कोई कितना भी बड़ा लंडबाज हो,
मात्र कुछ मिनट में उसका माल निकाल देगी!
बड़ी " वाइल्ड " होती है !!
इस मामले में!
उसको किसी के शरीर में बुलाना होता है!
मेने केतकी के शरीर में उसका आवाहन किया!
जेसे ही वो आई,
उसने मुझे गर्दन से पकड़ के,,
जमीन पे पटक दिया!!
और चढ़ गई मेरे ऊपर!
लगी जोरदार धक्के लगाने!
उसकी स्पीड इतनी,
की आस पास की धूल उड़ने लगी!
चिल्लाये जाये ,,
ये बेबी,यस,यस,फ़क यु, आह ,ओह!
उसके मजे का तो पता नही ,
मेरे आँड और गांड दोनों के बुरे हाल थे!
उसके कूदने से,
मेरे आँड सूज के तरबूज जेसे हो गए!
और आँखे बटेर जेसी!!
अचानक वो उठी,
मेरी लुल्ली को ऐसे मुठियाय ,,
जेसे मशिन में गन्ना पेरते हैं!
इतनी सारी कोशिशों के बाद ,
"दो बून्द " बाहर आ ही गई!
ये देख सबने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया!
बसंती डाकन गालियाँ देती हुई लोप हो गई!
केतकी ने वे " दो बुँदे " माल की,
चाभी पे लगाई,
और वहाँ एक खम्बे के छेद में,
डाल के खोल दिया!

द्वार खुला क्या नजारा था.........मित्रगण!!नजारा ऐसा जेसे स्वर्ग हो!
पर दिखे कोई भी नहीं!
मेने कुपोषण मन्त्र पढ़ा ,
और सब की आँखों में उंगलिया ठूस दी!
सब गाली बकते रहे मुझको!

मित्रगण!! ये कुपोषण मन्त्र से ,
ब्रह्माण्ड तक का नजारा हो जाता है!!
"महा ठरकी"ही इस मन्त्र को सिद्ध कर पाते हैं!
इसको सिद्ध करने का तरीका मैं बताता हूँ,
जल्दी ही सिद्ध हो जायेगा!!
विश्वास ना हो तो कर के देख लो!
मन्त्र" बाबा 8001" जी से लेलेना!
मन्त्र ना भी पढ़ो तो भी कोई दिक्कत नही ,
मुझ चूतिये का ध्यान करो ,,
और 108 बार मेरा नाम जपो
और जोर से अपनी उंगलियो को ,
अपनी आँखों में मारो!
फिर बताना कितने ग्रह दिखे!!
खेर!!हम बढ़े आगे,
मुझसे चला नही जा रहा था!!
आंडो में सूजन के कारण!!
तो मेने एक गमछे का,
एक सिरा आंडो में ,,
और दूसरा गर्दन में बांध लिया!!
इससे थोडा सहारा मिल गया मुझे!
हम अंदर प्रवेश कर गए!
सब के नेत्र कुपोषित थे ,
तो सब नजर आ रहा था!
"ततैये "इधर- उधर उड़ रहे थे!
तभी कुछ आवाज सुनी ,
जेसे किसी ने पुकारा हो!
देखा तो ,,
एक प्यारा सा छोटा सा "ततैया",
हमे बोल रहा था!
कहाँ जा रहे हो? बोला उसने!
केतकी ने बोला-
आपके राजा "विपुलेश्वर"जी के,
दर्शन के लिए जा रहे है!
वो मुस्कुराया ,
और बोला मेरे लिए क्या लाये हो!
मैं यहाँ का द्वार रक्षक हूँ!
मेरा नाम "बावरा डंक "है!!
यहां हर आने वाले को ,
मुझे कुछ उपहार देना होता है!
इससे पहले की कोई बोलता,
शर्मा जी ने उसे अपने पटके से उसको,
"फटकार" दिया!!
चल भोसड़ी के!! लेवेगा उपहार ! बोले शर्मा जी
शर्मा जी को इतना करना था,
की बस तूफान सा आगया वहाँ !!
हम किसी तरह भागे,
और एक पेड़ के पीछे छिप कर देखने लगे!
"बावरा डंक "ने अपना असली रूप ले लिया था !!
बड़ा ही रोद्र रूप था!
हम सबकी तो फट के हाथ में आ गई!!
उसने शर्मा जी को जकड़ रखा था !
और शर्मा जी फड़फड़ा रहे थे छुटने के लिए,
पर सब बेकार!!
"बावरा डंक" ने निकाला अपना डंक
दो हाथ जितना डंक उसका,
पेले जा रहा शर्मा जी के कूल्हों पे!
शर्मा जी के कूल्हे अफ़्रीकी औरतों जेसे हो गए!
फिर किया उनको चोदना शुरू!
शर्मा जी चिल्लाते रहे दर्द के मारे,,
तेरा डंक तेरी गांड में घुस जाये,
नासपीटे!!!बावरे डंक!
पर "बावरा डंक"ने उन्हें ना छोड़ा!
और अपने मन और लण्ड की चाही पूरी करता रहा!
जब "बावरा डंक "की हवस पूरी हो गई ,
तो लात मार के भगा दिया!
वे आये कहराते हुए 61-62 करते हुए!
इतना तो उस मुर्गी वाले ,
काले भुसण्ड ने सारा दिन में ना चोदा,
जितना इस "बावरे डंक "ने,
15 मिनट में चोद डाला!बोले वो!
उनकी हालात ऐसी थी के जेसे,
किसी मुर्गे से जबरदस्ती,
" शुतुरमुर्ग का अंडा" पैदा करवा लिया हो!
केतकी उनको देख के हँसे जा रही!
नया शोरूम मुबारक हो शर्मा जी!
उनके बड़े बड़े सूजे हुए कुल्हो को देख के बोली केतकी!
शर्मा जी का बोल ना फूटा ,किलसते हुए
बेचारे वहीँ ओंधे हो कर लेटे रहे!
कुछ देर बाद..........हम चले आगे,
हमारे आगे शर्मा जी !
उनकी चौड़ा पिछवाड़ा देख के तो,
केतकी भी जल भून गई!!
वे आगे-आगे ,
हम उनके पीछे!
कसम से आँड ना दुःख रहे होते तो,
मैं ही कोड़डा कर लेता उनको!!
हम जिधर से भी गुजरे,
शर्मा जी को देख के सब हैरान!!
पूरा लक्ष्मी नगर के बाशिंदे ,
उन्हें देख देख के हँसें!!
शर्मा जी को तो इतनी दहशत हो गई,
की इधर-उधर देखे बिना ,
सीधे ही चलें जायें
हम पहुँचे एक जगह!
क्या महल था ,
देख के ही आँखे चौड़ी हो गई !
पूरा सोने का बना!
नेम प्लेट भी लगी थी!
मिस्टर&मिसेज विपुलेश्वर
1/420,ततैया नगरी
लक्ष्मी नगर,तहसील भिरड़ गाँव
Ph:- olo-🔔घण्टा 🔔घण्टा 🔔घण्टा 🔔🔔डबल घण्टा🔔🔔🔔ट्रिपल घण्टा
कमाल का एड्रेस था!
हमने बैल बजाइ,
एक दासी ने खोला द्वार!
आप का स्वागत है,बोली वो!
अंदर गए ,जल पान दिया गया हमको!
दासी ने बताया की ,
अभी कुछ देर में मिलेंगे विपुलेश्वर जी,
आप सब से !
मित्रगण!!हम तो खाने पिने के मजे लेने लगे!
जब विपुलेश्वर को आना होता आ जाता!
रात होने को आई ,
अभी तक राजा जी की कोई खबर नही थी!
यार!!राजा जी के दर्शन नही हुए !!
बोला मेने शर्मा जी को!
राजा आदमी है,
किसी रानी के गांठ अटका दी होगी,
टाइम तो लगता ही है,बोले शर्मा जी
खाना-पीना हुआ हमारा,
हमे कमरे दे दिए गए थे!
हम चल दिए अपने कमरों की तरफ,
मेरे कमरे में एक दासी आई,
मोमबत्ती जलाने!
क्या दासी थी!
तुम्हारा नाम क्या है,पूछा मेने!
"बिजली"नाम है मेरा!बोला उसने!
नाम" बिजली" है,
और जला मोमबत्ती रही हो!
बोला मेने हँसते हुए,
और उसका एक पों-पों दबा दिया!!
उसने घूरा मुझे ,
फिर क्या हुआ पता नही!
कुछ दिखा नही!!!
सुबह ही होश आया मुझे तो!
सुबह आँख खुली तो,
मेरा पूरा बदन अकड़ रहा था!
अपना बैग टटोला मेने ,
चार थैलियां दारू की चढ़ाई !!
तब जाके अकड़न कम हुई कुछ!
आई डकार दोनों तरफ से,
पूरा कमरा फ्रेश हो गया!
और मैं भी!!
कल रात का ध्यान हो आया मुझे,
हुआ क्या था!!
मित्रगण!अपनी ठरक में ,
मैं विपुलेश्वर की " झांटलगी " दासी से,
छेड़खानी कर बैठा था!!
उसने अपना तन्नाया हुआ ,
डंक पेल दिया था मुझे!!
उसके ही असर से,
मैं बेहोश हो गया था!!
मैं आया बाहर ,
सब बगीचे में थे!!!
शर्मा जी और लोडुगिरि लोटा उठाये,
अपनी बारी के इन्तजार में ,
बीड़ी सुताये जा रहे थे!
मैं चला वापस कमरे की तरफ,
कुछ देर बाद सब आ गए!!
नाश्ता-पानी हुआ,
एक सेवक राजा जी का पैगाम लेके आया!
आज शायद ,
विपुलेश्वर जी से मुलाकात हो जानी थी!
मैं तो लगा अपनी तैयारी में!
आज शाम दावत थी हमारी महल में!
तो मित्रगण हुई शाम ,
हम जा पहुँचे विपुलेश्वर जी के सामने!!
प्रणाम किया सबने!
क्या कद काठी थी उनकी!
हम तो मेमने से लगे उनके सामने!
हमे बेठने का इशारा किया,
और खुद खड़े रहे!
मेने बोला आप पहले बैठे महाराज जी!
तो बोले मैं बैठ नही सकता!
क्यों महाराज जी?पूछा मेने!
आज सुबह पैर फिसल गया हमारा,
बाथरूम में नहाते वक्त!!
और डंक का "नुक्का" (नोंक) टूट गया,
और नहाने का डब्बा पिछवाड़े में जा घुसा!
काफी तकलीफ है !!
इस लिये नही बैठ सकता!! बताया उन्होंने!
जेसे ही बताया उन्होंने,
मेरी तो हँसी ही ना रुके!
बस यही गलती हो गई!
विपुलेश्वर जी की त्यौरियां चढ़ गई!!
कैद कर लो इन भड़वों को!! गरजे विपुलेश्वर!
सैनिक दौड़ते हुए आये ,
और हम सबको पकड़ लिया!!
शाम को इसका हिसाब करूँगा इन सबका!!
बोलके लंगड़ाते हुए,
विपुलेश्वर अपने कक्ष की और चले गए!
"बकरी चोद" अपनी जुबान को,
बंद नही रख सकता था क्या??
चुदवा दी हम सबकी मैय्या!!
बोले सब एक साथ!!
शाम हुई ,,
हमको बांध कर एक मैदान में ले जाया गया!
पूरी ततैया नगरी के वासी वहां जमा थे!
तभी........

मैदान में सभी ततैया नगरी वाले जमा हो गए !
कारण एक तो उनके यहाँ खास त्यौहार था,
दूसरा मेरी वजह से ! !
मुझे बांध रखा था !
तभी विपुलेश्वर अपने ,
लाव-लश्कर के साथ आता दिखाई दिया !
सब उसके सम्मान में खड़े हो गए !
उसने सबको बेठने का इशारा किया !
और मुझे देखते हुए बोला,
तुम्हारे ऊपर बहुत गंभीर आरोप हैं,
तुम्हारे ऊपर एक दासी को ,
उंगल करने का आरोप लगा है!
तुमने मेरे साथ भी चुतियापन्ति की,
जो की उससे भी बड़ा आरोप है!
तुम्हारे साथी ने हमारे द्वार रक्षक के साथ ,
"कुल्हा डंकी "की ये भी घोर अपराध है!
तुम्हें और तुम्हारे साथियों को,
अपनी सफाई में कुछ कहना है !!
तो ये समझ लो की,
यहाँ ऐसा कोई कानून नही है!!
अब तुम अपने किये की सजा,
भुगतने को तयार हो जाओ!
कहाँ तो मैं यहाँ ,
धन और सिध्दि लेने के लिए आया था !
यहाँ तो जान के "लोले" लग गए थे!
तुमको तीन तरह से तुम्हारी सजा,
भुगतने के तरीके बताये जायेंगे !!
तुम जेसे चाहो भुगत सकते हो! बोले विपुलेश्वर!
पहला हमसे मुकाबला करो!!!
दूसरा हमारा डंक खाओ!!!!
तीसरा तुम्हे कद्दू खाना पड़ेगा!!!!

इतना सुनना था की ,
शर्मा जी को और लोडु को ,
तो दस्त लग गए!!
जा पहुँचे विपुलेश्वर के चरणों में,
और उनके अंडे चूम के,
अपनी माफ़ी करवा ली !
विपुलेश्वर मुस्कुराया मेरी तरफ देख के,
मैं समझ गया उसके मन की बात!
अब मैं ठहरा एक नंबर का "छिछोरा"
आसानी से नही मानता!
मुकाबला करूँगा मैं!कहा मैनें!
मेने पढ़ा मन्त्र अपनी शक्ति हाड़तोड़ का!
वो मन्त्र शुरू करते ही प्रकट हुई ,
और मुझे दे थप्पड़ पे थप्पड़ मारने लगी!
साथ ही बोले जाये ,
"पागल के पूत " ना जगह देखी,
ना सामने वारे को!!
ना भोग ना दारू लगो मन्तर जापने!!
वो मुझे ठोक पीट के गायब हुई,
फिर हिम्मत ना हुई और बुलाने की!!
डंक ही मरवा लेता हूँ! सोचा मैने!
डंक मार लो विपुलेश्वर, बोला मेने!
इतना सुनते ही निकाला,
विपुलेश्वर ने अपना तन्नाया डंक!!!
डंक क्या था,
हाथी की सूंड जैसा!!
डंक देख के ही मेरी तो,
आत्मा की भी गांड फट गई!!
पहले सुन तो लिया करो,
सही से महाराज जी!!!
बात बात पे डंक निकाल लेते हो,
बोला मेने!! घबराते हुए,
कददू खाऊंगा मैं!!! कहा उनको!
ये आखरी मोका है!!! सोचा मेने,
अब ये तो पूरा करना ही होगा ,
तभी जान बचेगी!!बोले विपुलेश्वर,
खाने की चीज है खा लेंगे!! कहा मेने
तभी जोरदार ठहाके गूंजने लगे,
चारों तरफ से!सब हँसे जाये!
विपुलेश्वर आगे आया और बोला!
कददू सुखा खायेगा या गीला!
"सुखा" बोला मैने जोश सेइतना सुनते ही ,
विपुलेश्वर ने उतार फेंका अपना धोती कच्छा!!
और अपना दस फुट का,
मूसल मुठियाते हुए आया मेरे पास!
अरे !!ये सब क्या है?चिल्लाया मैं
ये मूसल क्यों निकाल लिया??पूछा मेने
इसी मूसल का नाम "कद्दू" है!बोला विपुलेश्वर!
उसका ये रूप देख के मेरी तो सारी सिद्धियाँ ,
अपने पिछवाड़े पे हाथ रख के भाग लीं!!
अब तो,,
गुरुदेव श्री श्री श्री महाचोदू जी का ही सहारा था!
मेने टेलीपैथी क्रिया की तुरंत ,
और भेजा संदेसा!!
उनका जवाब आया की,
बेटा कम से कम,
थूक लगाने की एप्लीकेशन डाल दे विपुलेश्वर को!!
नही तो तेरे पिछवाड़े का ,
जम्बू द्वीप बनने से कोई नही रोक सकता !!
इतना बोल उन्होंने भी कनेक्शन ब्लोक कर डाला!
रही सही उम्मीद भी खत्म हुई मेरी!
"अपनी करनी से,छेद फुड़वायो" वाली,
कहावत याद आ गई,
अब कुछ नही हो सकता था,
केतकी दौड़ी-दौड़ी विपुलेश्वर के पास आई,
तो कुछ उम्मीद बंधी!!
की ये मदद करेगी कुछ मेरी!!
पर उसकी बात सुनके तो ,
मेरे पेट का पानी भी सुख गया!
केतकी-महाराज जी !! मुझे कुछ कहना है आपसे!
बोलो सुंदरी! बोला विपुलेश्वर,
इस लंडूरे ने मेरे बोबे मसलने के बहाने ,,
मेरी 1000/- रूपये की पत्ती भी चोरी की! बोली वो
"बहन की लौड़ी"!!
थूक का आसरा भी खत्म करवा दिया मेरा! सोचा मन में मेने
इतना सुनते ही विपुलेश्वर ने देखा मेरी तरफ,
उसकी आँखों में वासना के ,
बड़े-बड़े कीड़े कुलबुला रहे थे!
और मेरी गांड में डर के!!
मैं कातर दृष्टी से देख रहा था उसे !
पर उसने कोई दया ना दिखाई!
और अपनी तोप लेके ,
मेरे कश्मीर जेसे पिछवाड़े में खूब आतंक मचाया !!
और उसे अफगानिस्तान बना डाला!
मैं बेहोश हो चूका था!
कुछ शोर सुनके आँखे खुली ,
मेरी देखा ,
मैं और शर्मा जी एक नाले में पड़े थे!
मेरे डेरे के समीप!
लोडु,केतकीऔर ततैया नगरी का,
दूर-दूर का अता-पता नहीं!!
पड़ोसी जन पानी डाल के ,
और चिल्ला-चिल्ला के पुकार रहे थे हमें!
उस भीड़ में सेवक का चेहरा नजर आया ,
वो हमें किसी तरह डेरे में ले गया!
साफ़ सफाई हुई हमारी!
मित्रगण! विपुलेश्वर ने अपनी शक्ति से ,
हमे हमारे स्थान पे भेज दिया!
जय हो "निर्दयी" मुसलधारी विपुलेश्वर की!
कुछ होश सम्भले तो बोले शर्मा जी,
बहनचोद!! ये टाइगर ब्रांड भी कैसे कैसे सपने दिखती है!
उनका पिछवाड़ा देख के बताया उनको ,
की जो हुआ वो सपना नही हकीकत थी!
मेरे भी पिछवाड़े तेज दर्द की तेज लहर उठी,
शीशे में देखा तो उनसे कम ना था मेरा पिछवाड़ा भी!
मित्रगण!! कुछ भी हुआ हो ,
पर अब हमारे खाने कमाने का जुगाड़ हो गया था!
शर्मा जी तो 9 ग्लोरी होल पार्लर के मालिक हो गए हैं!
बिजी रहते है ज्यादातर !!
पर जब भी फुरसत होती है,
" टाइगर " मारने चले आते है मेरे पास!!!!!!!
...........साधुवाद.........
दोस्तों!!आपको कहानी केसी लगी।कृपया बताएं आप लोग।आपके सुझाव और जवाब अपेक्षित हैं


अगली यात्रा के लिए तैयार रहिये मित्रों

   
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